Sweekriti - 1 in Hindi Moral Stories by GAYATRI THAKUR books and stories PDF | स्वीकृति - 1

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स्वीकृति - 1


घबराई हुई सी पुर्णिमा तेज भागती हुई सीढ़ियों से नीचे उतरती है. और घबराहट में नीचे उतरती हुई वह दो खेड़ी एक ही बार में फांद जाती है, और सीधे बुआ जी से टकराती है. बुआ जी जोर से चिल्लाती है..,”अरे..! होश कहां छोड़ आई है.. बदतमीज लड़की ऐसा क्या देख लिया.., जो यूं घबराई हुई सी भाग रही है...!”


तभी पूर्णिमा बोल पड़ती है..," बुआ जी! आप सुनोगे तो आपके भी होश उड़ जाएंगे.., छोटी भाभी अपने कमरे में नहीं है, मैंने हर जगह ढूंढा वह कहीं नहीं ..है" पूर्णिमा बिना रुके एक ही सांस में सारी बातें कह जाती है.


बुआ जी एक टक पूर्णिमा को देखती रह जाती हैं. और फिर बोल पड़ती हैं , "यह तो होना ही था! मुझे तो उसके हाव-भाव पहले से ही समझ आ रहे थे, पर मेरी सुनता कौन है!"


पूर्णिमा श्रीकांत की छोटी बहन है, अभी-अभी दसवीं की परीक्षा दी है. वैसे पूर्णिमा श्रीकांत की काफी लाडली बहन भी है. बुआ जी का नाम वैसे तो लक्ष्मी है, परंतु शरारत से या फिर लाड़ से, सभी उन्हें लच्क्षो बुआ बुलाते हैं.


लच्क्षो बुआ की शादी वर्षों पहले पास के ही एक गांव में हुई थी. परंतु इन्हें गांव की आबो हवा रास नही आती, अतः आए दिन ही ये अपने भाई के घर में ही पहुंची रहती हैं और उनकी पूरी कोशिश रहती है कि घर का सारा कमांड इनके हाथों में हो तथा घर के हर छोटे बड़े फैसले बिना उनकी इजाजत की नहीं ली जाए.


शादी का न्योता भी बुआ जी के पास अन्य रिश्तेदारों से काफी पहले पहुंचा था, लेकिन यह पिछली गर्मी में जो मायके से रूठ कर गई थी वह काफी मनाने के बाद शादी के एक दिन पहले ही पहुंची थी .


बुआ जी के मायके से रूठ के जाने के पीछे भी एक कहानी है.

दरअसल हुआ यह कि यह अपनी बेटी की शादी उसके ससुराल वालों से इस शर्त पर करा आई थी कि यह अपने डॉक्टर भतीजे की शादी अपनी बेटी की ननंद से करा देंगी. लेकिन किसी कारणवश बात नहीं बनीं.


खैर! नई नवेली दुल्हन घर से गायब है.. यह खबर तेजी से जंगल की आग की तरह पूरे मोहल्ले में फैल गई.


बड़के चाचा जी तो बस गुस्से में बड़बड़ाना शुरू किए तो चुप ही नहीं हो रहे थे, “ और करवाओ दहेज लेकर शादी...”.


दरअसल उनकी अपनी व्यथा है जो उनके ही शब्दों के माध्यम से फूट रही थी . साठ की उम्र में वह अभी तक कुंवारे रह गए! ऐसा नहीं था कि उनकी शादी के लिए प्रयास नहीं किए गए परंतु वकालत की पढ़ाई का खर्च उनकी शादी में मिलने वाले दहेज की रकम से वसूलने की कोशिश की जा रही थी कई जगह लड़की देखी गई परंतु दूल्हे की कीमत इतनी अधिक थी कि कोई खरीदार नहीं मिल पा रहा था.


ऐसे ही एक जगह वह लड़की देखने गए थे, लड़की का पिता भी पेशे से वकील ही था. इन लोगों की लड़की के घर में बहुत ही खातिरदारी हुई, और अंत में लड़की के पिता ने इनके पिता के कान में धीरे से एक बात कही, “भाई साहब सब कुछ ठीक-ठाक है, मैं आपको दहेज में सात लाख रुपए दे सकता हूं".


यह रकम दहेज में मांगी गई रकम से काफी अधिक थी. अतः यह लोग उम्मीद बांधकर अपने घर आ गए. परंतु काफी समय तक लड़की वालों के यहां से कोई खबर नहीं आयी. और लड़के वाले होने के घमंड में यह लोग दोबारा पूछने नहीं गए. और इस बीच जितने भी रिश्ते आए उन सबों को इन लोगों ने यह कहकर ठुकरा दिया कि हमें तो दहेज में इतनी रकम मिल रहे थे, अब उससे एक पैसे भी कम नहीं लेंगे. तो बस! यह चाचा जी आज तक कुंवारे रह गए.


श्रीकांत अपने माता पिता का दूसरा बेटा है. एक बड़ा भाई है जिसका नाम लक्ष्मीकांत है, और उसी के दहेज के खर्च से श्रीकांत की डॉक्टरी की पढ़ाई हो पाई है.


श्रीकांत के पिता अभी कुछ साल पहले ही रिटायर हुए हैं, घर में इतनी जमा पूंजी नहीं थी कि बेटे की अमेरिका की डॉक्टरी की पढ़ाई के खर्च को पूरा कर पाते . और आगे एक और छोटी बेटी थी जिसकी शादी और पढ़ाई का खर्च भी जुटाना था अतः उन्होंने अपनी खानदानी परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने डॉक्टर बेटे की शादी एक रईस घर में बड़े बिजनेसमैन की इकलौती बेटी सुष्मिता से करवा दी.


सुष्मिता अभी-अभी अंग्रेजी से एमए की परीक्षा पास की थी.

सुष्मिता के पिता ताराचंद है ,जो है तो बड़े रईस लेकिन पुराने ख्यालों के, उनके अनुसार लड़की की शादी के लिए लड़की की राय जानना जरूरी नहीं है.


ताराचंद ने अपनी बेटी को हर तरह की सुख सुविधा दी लेकिन शादी जैसे गंभीर मसले का निर्णय लेने का अधिकार उनके नजर में सिर्फ मां बाप का होता है, और इसमें भी मां से ज्यादा पिता का.., उनके लिए शादी या बिजनेस जैसे मामले औरतों कि समझ के बाहर की चीज है.

तो बस उन्होंने एक मोटी रकम देकर एक डॉक्टर पति और बेटी के अमेरिका में बसने का इंतजाम कर दिया.


श्रीकांत की मां रसोई में बड़ी बहू विनीता के साथ सबके चाय नाश्ते के प्रबंध में जुटी हुई थी जब उन्होंने अपनी नई बहू की कमरे से गायब होने की बात सुनी तो बड़े संयम के साथ अपनी बड़ी बहू विनीता से कहा, ' विनीता एक बार तुम जाकर छोटे के कमरे में देख कर आओ हो सकता है वह गुसल खाने में या ऊपर के कमरे में कहीं पर हो, यह लड़की ना जाने इसने ठीक से देखा भी है या नहीं.. या यूं ही हो हल्ला मचा दी..., श्रीकांत की मां की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि बुआजी बीच में ही बोल पड़ी.. “हो हल्ला क्यों.. मैं तो पहले से ही जानती थी, यह सब तो होना ही था, मुझे लड़की के लक्षण तो शादी के दिन से ही नजर आ रहे थे..”.


बुआ जी आगे भी कहना जारी रखती हैं, ' इस घर में मेरी सुनता ही कौन है , “अम्मा के मरते ही तुम सब ने मुझे पराया कर दिया..”


बुआ जी अपना ही राग अलापे जा रही थी, इस अलाप में उनकी नाराजगी झलक रही थी जो उनके द्वारा सुझाए गए रिश्ते के ठुकराए जाने के कारण था, जिसे अब नई बहू के गायब होने की खबर ने एक मजबूत आधार दे दिया था.


इतना सभी कुछ हो रहा था परंतु किसी का ध्यान अभी तक श्रीकांत की ओर नहीं गया था ,

तभी श्रीकांत के पिता रामेश्वर जी की जोर से आवाज आती है, “अरे श्रीकांत.. श्रीकांत.. श्रीकांत कहां है?”


इतने में दरवाजे की घंटी बजती है और पूर्णिमा दरवाजे की ओर तेजी से भागती है...

विनीता सभी कमरों में, बारी बारी से नई बहू को तलाश करती है और साथ में तसल्ली भी कर लेती है कि सच में वह भाग गई है.


श्रीकांत का कमरा दूसरे माले पर था. श्रीकांत के कमरे को श्रीकांत की शादी से ठीक पहले श्रीकांत की पसंद के रंग, पीले रंग से रंग रोगन कराया गया था, उसके कमरे के ऊपर के छत में दो और कमरे थे जिसमें मेहमानों के ठहरने का अक्सर इंतजाम होता था, ऊपर के कमरे से लगी सीढ़ी थी जो नीचे बगीचे की ओर जाती थी और जिससे बाहर जाने का रास्ता भी निकलता था. वैसे वह कमरा अक्सर बंद रहा करता था परंतु शादी में आए मेहमानों के कारण उसे खोला गया था. हो सकता है कि सुष्मिता यहीं से बिना किसी से कुछ बताए बाहर निकल गई हो.


विनीता श्रीकांत के कमरे में जाती है और कमरे की सजावट को देखती है कमरे की सजावट ठीक वैसे ही थी जैसे नए जोड़ें के स्वागत में की गई थी कहीं कुछ बिखरा हुआ नहीं था, कमरे का एक-एक सामान ठीक वैसे ही था जैसे रखा गया था, लाल और पीले गुलाब से सजा वह कमरा काफी सुंदर दिख रहा था, विनीता पाती है कि कमरे में नई बहू के साथ आया सूटकेस भी कमरे में नहीं है. कमरे से लगा गुसल खाने का दरवाजा खुला पड़ा हुआ था .विनीता ऊपर के कमरे में जाती है, वहां भी उसे कोई नहीं दिखता है.


विनीता पूरी तसल्ली कर लेने के बाद नीचे आ जाती है.


इधर पूर्णिमा दरवाजा खोलती है, तो सामने फूफा जी को खड़ा पाती है. फूफा जी हैरानी में मुंह से पान के पीक को फेंकते हुए पूर्णिमा से सवाल करते हैं, '' कुछ बात हुई है क्या! मैंने बहुत ही हड़बड़ी में श्रीकांत को थोड़ी देर पहले बाइक से कहीं जाते देखा है''. और फिर पूर्णिमा के ठीक पीछे बुआ जी को खड़ी देखकर बुआ जी से नजरें बचाने की कोशिश करते हैं. फूफा जी को देखते ही बुआ जी चिल्ला पड़ती है, “यह आप इतनी सुबह-सुबह कहां से आ रहे हैं! यहां पूरे मोहल्ले को खबर मिल गई, और एक आप अकेले ही हैं जो अभी तक अनजान है''.


फूफा जी नजरें चुराते हुए बोलते हैं, “वो मैं जरा.". .., और कहते कहते बीच में ही रुक जाते हैं, कि कहीं उनकी चोरी पकड़ी ना जाए. और फिर बुआ जी के सवाल के बदले सवाल कर देते हैं, “मैं पूछता हूं, आखिर बात क्या है.. क्या हुआ है! ''


तभी पूर्णिमा, " फूफा जी छोटी भाभी घर से गायब है और ऊपर से उनका सामान भी नहीं है, हमने बहुत ढूंढा पर वह कहीं नहीं है."


फूफा जी, “और उसके मायके से आया वह लड़का.. वह कहां है "


इतने में बुआ जी बोली, " वह तो आपको पता होगा, आपके साथ छत वाले कमरे में था न! "


वैसे फूफा जी खुद ही आधी रात से गायब थे, फूफा जी काफी मिलनसार स्वभाव के हैं जब भी अपने ससुराल आते हैं, आसपास के हर किसी से मिलने चले जाते हैं.


दरअसल हुआ यह कि फूफा जी अपनी शादी के बाद पहली बार होली में ससुराल आए थे और पड़ोस की भाभी के साथ होली के रंग में ऐसे रंगे कि उनके कुर्ते पर चढ़ा होली का रंग आज तक उतर नहीं सका अतःजब कभी भी वे अपने ससुराल आते हैं यदा-कदा कभी कभार अपने कुर्ते के रंग को उतरवाने पड़ोस में चले जाते हैं.


वैसे फूफा जी पूरी तरह से पत्नीव्रता पति हैं. आप उनके चरित्र पर बिल्कुल भी शक ना करें! बुआ जी के आगे उनकी एक नहीं चलती है,

वैसे बुआ जी आज तक उस रंग को उतारने की हर कोशिश कर चुकी है पर अभी तक नाकाम रही हैं, बुआ जी के डांट तो उनके लिए अमृत समान है जिसे वह मुस्कुराते हुए पी जाते हैं.


फूफा जी का गांव में खेती बाड़ी का काम है जिसे उन का छोटा भाई संभालता है फूफा जी तो व्यापार संभालते हैं और जिसके काम के सिलसिले में अक्सर उन्हें अलग-अलग शहरों में जाना पड़ता है और हाल ही में वे किसी पार्टी कार्यकर्ता के रूप में भी विराजमान हुए हैं अतः पार्टी के काम से भी उन्हें इधर-उधर जाना पड़ता है वैसे उनके व्यापार के बारे में ठीक से किसी को कुछ पता नहीं है.


फूफा जी का पूरा व्यक्तित्व ही एक नेता का है उनके पहनावे से लेकर सभी कुछ.. आचार व्यवहार सभी कुछ में एक नेता की छवि झलकती है हर स्थिति में मुस्कुराने की आदत उनकी पहले से थी या नेता बनने के बाद उत्पन्न हुई यह कहा नहीं जा सकता वैसे वह झूठ भी बड़ी सफाई से बोल जाते हैं , उनके चरित्र मे यह लक्षण नेताओं की संगति से उत्पन्न हुई या पहले से थी ऐसा निश्चित रूप से कह पाना नामुमकिन है.


फूफा जी बुआ जी के सवालों के कारण खुद को कटघरे में फंसते देख चुपके से साले साहब की तरफ खिसक जाते हैं और बातचीत को संदर्भ से भटकने से बचा लेते हैं.


फूफा जी, " साले साहब आपने समधी जी को फोन करके पूछा क्या? कहीं उन दोनों में किसी बात पर लड़ाई हुई हो और वह गुस्से में मायके चली गई हो”.


श्रीकांत के पिता रामेश्वर जी अपने जीजा के मुख से यह बात सुनते ही चिढ़ जाते हैं और बोलते हैं, " कैसी बेतुकी बातें कर रहे हैं आप! भला दो दिन पहले ही उनकी शादी हुई है और ऐसे में उनकी किस बात पर झगड़ा हो सकती है"

फूफा जी के द्वारा पूछा गया यह सवाल सिर्फ एक सवाल ही था जो उनके अपने रात भर गायब रहने वाले कारनामे और बुआ जी के गुस्से से बचने के खातिर तथा विषय वस्तु को बदलने की कोशिश में की गई थी.


फूफा जी फिर बात को बदलते हुए, " मैंने श्रीकांत को बड़ी हड़बड़ी में कहीं जाते देखा है, मैंने आवाज भी लगाई पर उसने कुछ जवाब नहीं दिया, तुम में से किसने अभी तक फोन करके पूछा उससे कि क्या बात हुई थी.. "


लक्ष्मीकांत, " हां फूफा जी , मैं कब से कोशिश कर रहा हूं परंतु उसका फोन बंद आ रहा है."


मोहल्ले भर की औरतें जो नई बहू की मुंह दिखाई की रस्म में आने वाली थी वह सभी अब कुछ तो कुतूहल वश और कुछ दुख या अफसोस दिखाने के लिए एकत्रित होने लगती हैं, सभी के चेहरे पर एक ही सवाल था कि आखिर क्या ऐसा हुआ जो अचानक नई नवेली बहू घर से यू गायब हो गई.


जितनी मुंह उतनी ही बातें होने लगी उतने ही अटकलें लगाए जाने लगे.


यह खबर जितनी तेजी से मोहल्ले में फैली थी उतनी ही तेजी से पूरे शहर में फैल गई, और फिर बेटी के गायब होने की खबर धीरे धीरे ताराचंद के कानों तक भी पहुंच गए.


बेटी के गायब होने की खबर पाकर ताराचंद फोन पर बेटी के ससुराल वालों को धमकाने लगते हैं.


ताराचंद फोन पर श्रीकांत के पिता को धमकाते हुए , " मैं तुम लोगों को देख लूंगा..., तुम लोगों ने मेरी बेटी के साथ जरूर कुछ बुरा किया है और उससे बचने के लिए यह झूठी कहानी गढ़ी है कि मेरी बेटी ससुराल से भाग गई है.., ताराचंद गुस्से से चिल्लाते हैं, "मैं तुम सबको देख लूंगा, अरे! तुम लोगों को और पैसे चाहिए थे तो मांग लेते.. मैं कहां मना कर रहा था.. "ताराचंद गुस्से से फूटे जा रहे थे और उनके मुंह में जो कुछ आ रहा था वह बोले जा रहे थे.


हालांकि हकीकत वह भी जानते थे कि उन्होंने अपनी बेटी की जोर जबरदस्ती से बिना उसकी मर्जी के शादी कराई है.


दहेज में ताराचंद ने जो दिल खोलकर रकम लुटाए थे वह सिर्फ समाज में अपनी झूठी प्रतिष्ठा एवं अपनी नाक को ऊंची रखने के लिए ही था, बेटी से ज्यादा चिंता तो उन्हें अपनी समाज में कमाई हुई प्रतिष्ठा की थी, जो अब उनकी बेटी के इस कृत्य से जाता हुआ दिख रहा था.


पैसे का घमंड तो ताराचंद के सिर चढ़ कर बोल रहा था, अपने गुस्से को अपनी समधी पर उतारने के बाद बाकी बचे हुए गुस्से को अपनी बेचारी पत्नी पर उतारने लगते हैं, जो कि पहले से ही अपने बेटी के फिक्र में घुली जा रही थी , और अब अपने तानाशाह पति का गुस्सा भी उस पर वज्रपात जैसा ही था. वह डरी सहमी सी एक कोने में बैठी थी उन्होंने अपने पति के इस गुस्से की खातिर खुद को पहले से ही तैयार कर रखा था. वर्षों से उन्हें इसकी आदत जो पड़ चुकी थी.


शादी के काफी वर्ष बीतने के बाद भी उन्हें कभी भी पति के मुंह से दो शब्द भी प्यार के सुनने को नहीं मिले थे, घर में उनकी हैसियत कुछ खास नहीं थी घर के दीवार पर टंगी तस्वीर और उनमें कुछ ज्यादा अंतर नहीं था.


ताराचंद गुस्से में, " यह सब तुम्हारे ही कर्मों का नतीजा है बेटी को बेटी की तरह परवरिश दिया होता तो आज यह दिन देखना ही नहीं पड़ता लड़कियों को उतनी ही आजादी देनी चाहिए थी जितनी उड़ने के लिए एक पतंग को... तुमने अगर उसकी डोर ठीक से खींच कर रखा होता तो आज यह दिन देखने को नहीं मिलता"


ताराचंद बेहद गुस्से में चिल्ला रहे थे और उनकी पत्नी उषा एक कोने में आंसू बहाती हुई पति की फटकार को चुपचाप सुन रही थी. ताराचंद गुस्से में अपने पत्नी पर जोर जोर से चिल्लाए जा रहे थे.


उषा के प्रति उसके पति का यह फटकार और तिरस्कार कोई पहली दफा नहीं था बल्कि शादी के बाद से ही वह इसकी आदी हो गई थी.


ताराचंद जब भी उसे इस तरह से फटकार लगाते तब वह बिना कुछ उत्तर दिए बिना किसी बहस के चुपचाप आंसू बहाते हुए सुनती रहती थी वह तो उस दिन भी चुप थी जब जवान बेटी को ताराचंद ने थप्पड़ तक लगा दिया था.


सुष्मिता ने जब किसी साधारण घर के एक बेहद मामूली से लड़के के साथ अपने प्यार की बात घर में कबूली थी और अपने पसंद के लड़के के साथ ही शादी करने तथा आगे की जिंदगी व्यतीत करने की अपनी इच्छा अपने पिता के समक्ष जाहिर की थी, ताराचंद एकदम से गरज पड़े थे और एक जोरदार तमाचा बेटी के गाल पर जड़ दिए थे. और चिल्लाते हुए कहा था, “तुम्हारी पढ़ाई तक तो ठीक थी.. परंतु शादी का निर्णय लेने का अधिकार तुम्हें बिल्कुल भी नहीं है, अरे, तुममे तो इतनी अकल ही नहीं कि तुम अपने लिए लड़का स्वयं पसंद करो, तुम्हारी शादी सिर्फ वही होगी जहां मैं तय करूंगा".


और फिर उन्होंने सुष्मिता के लिए जल्द से जल्द एक योग्य लड़के की तलाश शुरू कर दी थी.


आज भी हमारे समाज मे बहुत से ऐसे घर हैं जहां लड़की की शादी जोर जबरदस्ती से बिना उसकी मर्जी के करा दी जाती है. ताराचंद ने भी वही किया.


ताराचंद जल्द से जल्द एक योग्य वर को खरीद कर, चाहे उसके लिए उन्हें कितनी भी रकम लुटाने पड़े, लुटा कर सुष्मिता की हाथ पीले करवा देना चाहते थे.


सुष्मिता उस दिन काफी रोई थी और रोते हुए उसने अपनी मां से एक बात कही थी, " मां चाहे तुम जितने भी जुल्म अपनी पति की सहती रहो पर मैं यह बर्दाश्त नहीं करूंगी कि मेरी शादी मेरी मर्जी के खिलाफ जबरदस्ती कहीं और कर दी जाए, मैं भी उन्हीं की बेटी हूं".


उषा उस दिन भी कुछ नहीं कह पाई थी उसमें इतनी हिम्मत ही नहीं थी कि अपनी बेटी के पक्ष में अपने पति को समझाने की कोशिश भी कर पाती या अपने पति के खिलाफ खड़ी हो पाती उसमें जुल्म सहने की क्षमता तो थी परंतु पति के खिलाफ खड़े होने की साहस ना तो उसे उस दिन थी और ना आज..


वक्त ने सचमुच में उसे एक चलता फिरता बुत बना दिया था.


उषा शुरू से ऐसी नहीं थी ताराचंद के साथ शादी होने से पहले वह एक अत्यंत चंचल और हंसमुख लड़की थी.


उषा की एक जुड़वा बहन थी जिसका नाम निशा था निशा देखने में बिल्कुल उषा की ही तरह थी. दोनों के ही नयन नक्श रूपरेखा सभी कुछ एक समान थे. दोनों ही देखने में बेहद सुंदर और आकर्षक थी. फर्क सिर्फ था तो रंग का उषा दिखने में जहां सांवले रंग की थी. वही निशा एकदम से गोरे रंग की थी. दोनों के जन्म में महज पांच मिनट का फर्क था. उषा निशा से पांच मिनट की ही बड़ी थी.


जब ताराचंद जी अपनी शादी के लिए लड़की देखने गए तब लड़की वालों ने उषा की जगह निशा को दिखा दिया और शादी उषा से करा दी गई.


शादी वाले दिन तक तो मेकअप में छिपी उषा के रंग का ससुराल वालों को पता तक नहीं चल सका, लेकिन शादी के दूसरे दिन जब सुबह सुबह उषा नहा धोकर सबके सामने आई तो उसका सावला रंग भी सबके सामने आ गया.


शादी में लड़की बदले जाने की इस बात से ताराचंद बेहद नाराज हुए. ससुराल वालों के साथ काफी कहा सुनी हुई और आखिर में किसी तरह दोनों पक्षों के बड़े बुजुर्गों ने पहल कर समझा बुझा कर जैसे तैसे समझौता करा दिया। ताराचंद की नाराजगी उस दिन तो शांत हो गई परंतु उस बात की कीमत उषा ने पूरी जिंदगी तिरस्कार झेलते हुए चुकाई.


खैर! फिलहाल ताराचंद को अपनी नाक की पड़ी हुई थी बेटी के ससुराल से अचानक भाग जाने से समाज में उनकी बनाई हुई प्रतिष्ठा की फिक्र उन्हें अपनी बेटी से भी ज्यादा थी. अतः वे हकीकत को जानते हुए भी कि उनकी बेटी जरूर अपने प्रेमी के साथ भाग गई है, वह सारा इल्जाम ससुराल वालों के सिर पर थोपने की कोशिश में लग जाते हैं.


ताराचंद बेटी के ससुराल वालों पर दहेज के लिए प्रताड़ना और उनकी बेटी को कहीं गायब कर देने का इल्जाम लगाने में जुट जाते हैं.


ताराचंद अपने दौलतमंद होने तथा अपने हैसियत का प्रभाव दिखाते हुए पुलिस में अपनी बेटी के ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा देते हैं.


इधर श्रीकांत बाइक पर पीछे बैठा हुआ सड़क कि दोनों तरफ बारी बारी से इधर उधर देखते हुए सुष्मिता की तलाश कर रहा था.


बाइक चलाते हुए उसका दोस्त रमण बार-बार पीछे गर्दन घुमाते हुए उससे एक ही बात पूछे जा रहा था कि उन दोनों के बीच क्या बातें हुई थी. लेकिन श्रीकांत कुछ भी बताने की हालत में नहीं था.


श्रीकांत को रह रह के एक ही बात अंदर तक खाए जा रही थी कि उसके पिता ने उसका सौदा किया है. सुष्मिता भी चाहती तो सभी कुछ उसे शादी से पूर्व है बता सकती थी परंतु उसने भी उसे धोखा ही दिया...सब ने मिलकर उसे धोखा दिया है. वह खुद को बहुत ही तुच्छ और ठगा हुआ सा महसूस कर रहा था.


श्रीकांत मन ही मन खुद से ही बातें करते हुए सड़क के दोनों किनारे को बड़े ही ध्यान पूर्वक देखता जा रहा था ताकि कहीं भी उसे सुष्मिता नजर आए तो वह उसे समझा-बुझाकर घर ले जाए और शांति से इस समस्या का कोई हल निकाल ले..


श्रीकांत बिल्कुल भी नहीं चाहता था कि उसके घर की इज्जत यूं उछाली जाए. वह किसी गहरे विचार में खोया हुआ इधर उधर देखे जा रहा था कि अचानक एक तेज झटके ने उसे उसके चेतना में वापस ला दिया.


श्रीकांत चौक पड़ता है, “क.. क्या हुआ". रमण झटके के साथ बाइक को किनारे पर रोकते हुए, " यही बात तो मैं तुमसे कब से पूछे जा रहा हूं, कि क्या हुआ आखिर तुम दोनों के बीच ऐसी क्या बातें हुई जो भाभी घर छोड़कर भाग गई"..


दोनों , बाइक को एक किनारे पर खड़ी कर पास के ही एक बगीचे में रखे बेंच पर बैठते हैं.


रमण श्रीकांत का बचपन का दोस्त है. श्रीकांत के जीवन से जुड़ी ऐसी कोई बात नहीं है जो रमण को पता ना हो. अमेरिका में रहते हुए भी श्रीकांत रमण से फोन पर अपनी हर छोटी बड़ी बात शेयर करता ही था परंतु जिस बात को उसने अभी पिछली रात ही जानी है उसे कैसे बताता.


शादी की पहली रात जब श्रीकांत अपने कमरे में आया तभी सुष्मिता ने उसे वह कड़वी सच्चाई बताई थी उसने श्रीकांत से बताया था कि ,"वह किसी और से प्यार करती है और उसकी शादी जबरदस्ती उससे करवाई गई है. वह उसके लिए बस एक खरीदी हुई उपहार है जिसे उसके अमीर बाप ने उसके लिए अपनी स्वयं की प्रतिष्ठा और समाज में अपनी नाक ऊंची रखने के लिए एक मोटी रकम देकर प्राप्त की है. वह उसके साथ अपनी जिंदगी नहीं निभा सकती है "


यह सुनते ही श्रीकांत का मानो पैरों तले की जमीन ही खिसक गई थी. उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके साथ शादी के नाम पर इस तरह का धोखा होगा. वह तो अमेरिका से अपने देश सिर्फ अपने मां बाप की पसंद से शादी करने के लिए आया था. उसे क्या पता था कि यहां उसका सौदा हुआ है और सुष्मिता की शादी उससे जबरदस्ती करवाई जा रही है. भले ही उसने अपने मां बाप की मर्जी से शादी करनी चाही थी परंतु ऐसे किसी लड़की को वह उसकी मर्जी के खिलाफ अपनी पत्नी नहीं बना सकता था. हालांकि सुष्मिता उसे पहले ही नजर में पसंद आ गई थी.


श्रीकांत उसी समय कमरे के बाहर आ गया था और सारी रात वह कमरे के बाहर रखी हुई कुर्सी पर बैठा सुबह होने की प्रतीक्षा करता रहा था. बाहर कुर्सी पर बैठे हुए उसे कब नींद आ गई उसे कुछ पता ही नहीं चल सका जब सुबह उसकी आंखे खुली तो वह कमरे में गया और वहां उसने सुष्मिता और उसके साथ आए हुए सूटकेस को नहीं पाता है. वह घर में हर जगह सुष्मिता को खोजता है, और उसके नहीं मिलने पर घर में बिना किसी को बताए रमण को साथ लेकर उसे ढूंढने निकल पड़ता है .


पार्क में बेंच पर बैठेते हुए श्रीकांत , धीरे से भर्राय हुए स्वर में अपने दोस्त रमण से कहता है, "सुष्मिता अपने प्रेमी के साथ भाग गई है, मैं तो स्वयं उसकी शादी उसके प्रेमी से करा देता परंतु..” , कहते-कहते श्रीकांत रुक सा जाता है उसकी आंखें छलक आती है.. "इस तरह घर की इज्जत को उछाल कर नहीं"..


तभी श्रीकांत का ध्यान उसके अपने फोन की ओर जाता है. फोन स्विच ऑफ था उसे इस बात का भी ध्यान नहीं था.. वह फोन ऑन करता हैं तभी फोन पर एक मैसेज देखता है. मैसेज शायद सुष्मिता ने भेजी थी. वह पढ़ने की कोशिश करता है, सुष्मिता ने मैसेज में लिखा था, "तुम्हें बिना बताए जाने के लिए माफी चाहती हूं.. मैं अपनी मर्जी से जा रही हूं मैं इस जबरदस्ती की शादी को स्वीकार नहीं करती.. इस शादी से हम दोनों ही खुश नहीं…”


श्रीकांत अभी मैसेज को पढ़ ही रहा था कि फोन की घंटी बज पड़ती है, दूसरी ओर से पूर्णिमा की आवाज होती है, " भैया आप कहां पर हो ,घर में पुलिस आई है.. ". “पुलिस!”, श्रीकांत घबराकर उठ खड़ा होता है और रमण को जल्द से जल्द घर चलने के लिए कहता है. रमण कुछ पूछता उससे पहले ही श्रीकांत बोलता है, " घर पर पुलिस आई है हमें जल्द पहुंचना होगा". और दोनों वहां से निकल पड़ते हैं.


ताराचंद जी पुलिस लेकर श्रीकांत के घर पहुंचे हुए हैं, घर के बाहर काफी भीड़ एकत्रित है.


ताराचंद जी, "इंस्पेक्टर साहब आप गिरफ्तार कर लीजिए इन सभी को इन सब ने मिलकर दहेज की खातिर हमारी बेटी को कहीं गायब कर दिया है या..या फिर उसके साथ कुछ बहुत ही बुरा किया है.”


फूफा जी, " ऐसे कैसे गिरफ्तार कर लीजिएगा .. जब हम लोगों ने कोई गुनाह ही नहीं किया है, इनकी लड़की खुद घर से भाग गई है .. शिकायत तो हमें करानी चाहिए इनके खिलाफ..”. फूफा जी, " अगर यह पैसे वाले हैं तो हमारी भी पहुंच बहुत ऊपर तक है, आप बिना किसी सबूत के हमें गिरफ्तार नहीं कर सकते... "


“इंस्पेक्टर साहब!”, तभी पीछे से एक आवाज आती है, सभी पीछे मुड़कर देखते हैं.


भीड़ में से रास्ता बनाते हुए तभी श्रीकांत वहां पहुंचता है और सुष्मिता द्वारा भेजी गई मैसेज को अपने मोबाइल से इंस्पेक्टर साहब को दिखाता है. पूरी मैसेज को पढ़ने के बाद इंस्पेक्टर साहब बोलते हैं, " आपकी लड़की अपनी मर्जी से गई है और वह बालिग है , हम इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं, बल्कि जोर-जबर्दस्ती के इल्जाम में आप की गिरफ्तारी अवश्य हो सकती है."


श्रीकांत, " मैं जबरदस्ती किसी को अपनी पत्नी नहीं बना सकता, जबरदस्ती और मजबूरी से बंधे रिश्ते कभी भी खुशहाल नहीं हो सकते। शादी दो पवित्र दिलों का अटूट बंधन है, जिसमें दोनों की एक दूसरे के लिए हृदय की स्वीकृति अत्यंत आवश्यक है. जिस बंधन को दोनों की स्वीकृति प्राप्त हो वही अटूट है.”


ताराचंद चुपचाप वहां से सबकी नजरों से खुद को बचाते हुए चले जाते हैं.


अभी तक जो भीड़ वहां सुबह से एकत्रित थी , वह धीरे-धीरे कम होने लगती है और तभी भीड़ से एक काफी वृद्ध व्यक्ति बोलने लगता है, “शाबाश बेटा! बिल्कुल सही कहा तुमने , हमारे धर्म ग्रंथों में भी और अनेक कथाओं में भी ऐसे कई उदाहरण है जिसमें शादी के लिए लड़की की स्वीकृति को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है…”


इधर सुष्मिता अपने प्रेमी के साथ ट्रेन में बैठी हुई है और ट्रेन की खिड़की से बाहर देख रही है, जैसे बाहर की ताजी हवाओं को एक बार में ही पी लेना चाहती हैं....

क्रमशः

गायत्री ठाकुर